बर्बरीक की हंसी ने जब रोक दिया था अर्जुन के रथ का पहिया
- by admin
- Jul 05, 2024
शिरश्छेदित बोलते सिर की कहानी व्यास द्वारा रचित मूल महाभारत में नहीं है। इसके बावजूद लोककथाओं में वह अत्यंत लोकप्रिय धारणा है। ऐसी कहानियां राजस्थान से लेकर आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल तक फैली हुई हैं। इस सप्ताह और अगले सप्ताह के लेखों में हम उन्हें जानेंगे और समझेंगे कि बोलते हुए सिर का क्या महत्व है। तमिलनाडु में मान्यता है कि अर्जुन और उलूपी के पुत्र अरावन का शिरश्छेदित सिर बोलता था। कुरुक्षेत्र के युद्ध के सातवें दिन कृष्ण ने पांडवों को चेतावनी दी कि युद्ध की देवी काली को किसी दोषरहित पुरुष की बलि चढ़ाए बिना वे युद्ध नहीं जीतेंगे। पांडव असमंजस में थे कि किसकी बलि चढ़ाई जाए। केवल कृष्ण और अर्जुन के शरीर दोषरहित थे। लेकिन उनकी बलि चढ़ाना अकल्पनीय था। अंततः अरावन नामक योद्धा, जिनका दोषरहित शरीर था, अपनी बलि चढ़ाए जाने के लिए तैयार हुए। लेकिन वे चाहते थे कि मृत्यु से पहले उनका विवाह हो। पांडव, जो अरावन की बलि चढ़ाना चाहते थे, उनकी इच्छा पूरी करने के लिए बाध्य थे। चूंकि अरावन की अगले दिन मृत्यु निश्चित थी, इसलिए किसी भी महिला ने उनसे विवाह करने से इनकार कर दिया। अंततः कृष्ण ने मोहिनी का रूप लेकर अरावन से विवाह किया और पांडवों की दुविधा दूर की। दोनों ने एक रात साथ बिताई। तमिल परंपरा के अनुसार अरावन शिव के रूप हैं और इसलिए उन्हें कूठंडावर कहते हैं। मोहिनी रूपी विष्णु से विवाह करके वे सभी विपरीतलिंगी लोगों के दिव्य पति बन गए। अगली सुबह जब अरावन की बलि चढ़ाई गई तब मोहिनी उनका शोक मनाकर फिर से कृष्ण बन गईं। इस बलि से प्रसन्न होकर काली ने पांडवों को आश्वासन दिया कि युद्ध में उनकी जीत होगी। अरावन का उद्देश्य पूरा हुआ था और इसलिए सभी उन्हें भूल गए। मधुचंद्र की रात उन्होंने मोहिनी से युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की थी। इसलिए बलि के पश्चात कृष्ण ने उनका कटा हुआ सिर एक लंबी नोंक पर रखकर उसमें प्राण फूंक दिए। इस प्रेक्षण स्थल से इस सिर ने अगले दस दिन तक युद्ध देखा। एक और मान्यता के अनुसार बर्बरीक नामक महान धनुर्धर का कटा हुआ सिर बोलता था। जब कृष्ण ने उन्हें बरगद के पेड़ पर सभी पत्तों में एक ही बाण से छेद करने के लिए कहा, तब बर्बरीक ने पेड़ के पत्तों सहित उन पत्तों में भी छेद कर दिए जो कृष्ण ने तोड़कर अपने पैर के नीचे रखे थे। आंध्रप्रदेश की लोककथाओं के अनुसार बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक को वरदान मिला था कि जब तक वे बलहीन की ओर से लड़ेंगे, तब तक वे अपराजेय रहेंगे। इसलिए, जब वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में लड़े तब युद्ध ने कोई निर्णायक मोड़ नहीं लिया। यह इसलिए कि जब भी कोई पक्ष निर्बल हो जाता था, तब बर्बरीक की मदद से उसका फिर से वर्चस्व हो जाता था। इसे रोकने हेतु कृष्ण ने बर्बरीक से मिलकर उनसे मदद मांगी। बर्बरीक मदद मांग रहे किसी व्यक्ति को नकार नहीं सकते थे। कृष्ण ने बर्बरीक की आंखों के सामने एक आईना रखते हुए उनसे कहा कि ‘यह व्यक्ति’ उन्हें आतंकित कर रहा है। उन्होंने बर्बरीक से इस व्यक्ति के सिर को उसके धड़ से अलग करके उस आतंक को रोकने का अनुरोध किया। अपने आप का शिरश्छेदन करने के अतिरिक्त बर्बरीक के पास कोई चारा नहीं बचा था। लेकिन ऐसा करने से पहले उन्होंने कृष्ण से अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की। वे युद्ध देखना चाहते थे। कृष्ण ने उनकी इच्छा को स्वीकार कर बर्बरीक के कटे हुए सिर को नोंक पर रखकर उसे जीवित कर दिया। महाभारत के सभी नायक अगर मिल जाएं, तब भी वे बोलने वाले सिर से कम शक्तिशाली हैं। एक दंतकथा के अनुसार युद्ध के समय किसी की कोलाहलपूर्ण हंसी ने अर्जुन के रथ को पीछे ढकेल दिया था। अर्जुन को आश्चर्यचकित देखकर कृष्ण ने उन्हें बताया था कि वह हंसी बर्बरीक की थी। उन्होंने समझाया कि बर्बरीक इतने शक्तिशाली धनुर्धर थे कि वे अपने तरकश में केवल तीन बाण रखते थे- वे पहले बाण से कौरवों का, दूसरे बाण से पांडवों का और तीसरे बाण से स्वयं कृष्ण का नाश कर सकते थे। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कैसे उन्होंने चालाकी से बर्बरीक का सिर काट दिया था, ताकि वे युद्ध को प्रभावित न कर सके। इसलिए बर्बरीक को मात्र अपनी हंसी से युद्ध में हस्तक्षेप करते देखकर कृष्ण चिढ़ गए थे। उन्होंने बर्बरीक का सिर पहाड़ के शिखर से नीचे लाकर तल पर रख दिया, ताकि उनकी हंसी किसी रथ को न रोक पाए। अगले सप्ताह के लेख में हम देखेंगे कि कैसे बर्बरीक के सिर ने युद्ध की घटनाओं का वर्णन किया और यह भी जानेंगे कि ऐसे सिरों का महत्व क्या है।
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